कार्तिक मास माहात्म्य कथा - भाग 12
12 वां अध्याय
श्री नारद जी ने कहा तब जालंधर को अपनी खोज में आते देखकर इंद्र आदि देवता भयभीत होकर वहां से भी भाग निकले भागकर वह बैकुंठ में भगवान विष्णु के पास पहुंचे।
फिर देवताओं ने अपनी रक्षा के लिए उनकी स्तुति की देवताओं की उस दिव्य वाणी को सुनकर करुणासागर भगवान विष्णु ने उनसे कहां देवताओं तुम्हें को त्याग दो युद्ध में शीघ्र ही उस जालंधर को देखूंगा ऐसा कहने के साथ ही भगवान गरुड़ पर जा बैठे तब देवताओं सहित उन्हें युद्ध क्षेत्र की ओर प्रयाण करते देख समुद्र तन्हैया लक्ष्मी के नेत्रों में जल भर आया और उन्होंने कहां -हे_ नाथ यदि में सर्वदा आपकी प्रिय हूं और भक्त हूं तो मेरा भाई आप द्वारा युद्ध में कैसे मारा जाना चाहिए ।इस पर विष्णु भगवान ने कहा यदि तुम्हारी ऐसी ही प्रीति है तो मैं उसे अपने हाथों से नहीं मारूंगा। परंतु युद्ध में तो जाऊंगा ही। क्योंकि देवताओं ने मेरी बड़ी स्तुति की है ऐसा कह कर शंख चक्र गदा पद्म धारी भगवान विष्णु गरुड़ पर चढ़े हुए शीघ्र ही युद्ध के स्थान पर जा पहुंचे ।
जहां पर जिस जगह जालंधर विद्यमान था। विष्णु के तेज से भयभीत देवता सिंगर नाथ करने लगे फिर तो अरुण के अनुज गरुड़ के पंखों की प्रबल वायु से पीड़ित हो इस प्रकार घूमने लगे जैसे आंधी से बादल आकाश में घूमते हैं ।तब अपने वीर दैत्य को पीड़ित होते देखकर जालंधर न होकर भगवान विष्णु का अद्भुत वचन कहकर उन पर कठोर आक्रमण कर दिया।
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