कार्तिक मास माहात्म्य कथा - भाग 13
तेरहवाँ अध्याय
दैत्यों की तीक्ष्ण प्रहारों से व्याकुल देवता इधर-उधर भागने लगे। तब इन्द्र आदि को इस प्रकार भयभीत देखकर, गरुड़ पर चढ़े भगवान युद्धमें आगे बढ़े उन्होंने अपना सारंग नामक धनुष उठाकर बड़े जोर से टंकार किया। त्रिलोक गूंज उठा। पल मात्र में ही भगवान विष्णु ने हजारों दैत्यों के सिर काट गिराये। यह देखकर जलन्धर के क्रोध की सीमा न रही। फिर तो भगवान विष्णुऔर जलन्धर का महान संग्राम हुआ। बाणों से आकाश भर गया, लोग आश्चर्य करने लगे भगवान विष्णु ने अपने बाणों के वेग से, उस दैत्य की ध्वजा, क्षेत्र और धनुष बाण काट डाले तथा एक बाण से उसकी छाती में प्रहार किया इससे व्यथित हो उसने अपनी प्रचण्ड गदा उठा गरुड़ के मस्तक पर दे मारी। गरुड़ पृथ्वी पर गिर पड़ा, साथ ही क्रोध से उस दैत्य ने अपने होंठ काटे और भगवानविष्णु की छाती में तीक्ष्ण बाण मारा गया। इसके उत्तर में भगवान विष्णु ने उसकी गदा काट दी और अपने सारंग धनुष पर बाण चढ़ाकर उसको बांधना आरंभ किया जालंधर भी उन पर अपने प्रहरी बान बरसाने लगा उस समय जालंधर ने भगवान को कहीं पे ने बाण मारकर विष्णु धनुष को काट दिया धनुष कट जाने पर भगवान ने गदा ग्रहण कर ली और शीघ्र ही जालंधर को खींचकर मारी परंतु उसने वो गधा की मार से भी वह चलाई मानना हुआ और मन दोनों मत हाथी के समान उसे यानी गधा की मार को फूल की माला ही जाना साथ ही उस युद्ध मे ने अत्यंत क्रोधित होकर अपने मुख त्रिशूल उठाकर भगवान विष्णु पर छोड़ दिया भगवान ने शिव जी के चरणों का स्मरण करना मत उसके त्रिशूल को छाती में एक मुष्टिका मारा इसके उत्तर में भगवान विष्णु ने उसके उत्तर में भगवान विष्णु ने भी उसकी छाती पर अपनी मुष्टिका्
का प्रहार किया फिर दोनों घुटनों टेककर बाहो और मुष्टिका से बाहु युद्ध करने लगे कितनी ही देर तक भगवान उसके साथ युद्ध करते रहे ।जब वह कुछ श्रमिक से हो गए तब सर्वश्रेष्ठ मायावी से भगवान उस दैत्य से मेघवानी में बोले हैं-दैत्य श्रेष्ठ! धन्य हैं जो इस महायुद्ध में इतने बड़े-बड़े प्रहार से भी भयभीत न हुआ तेरे इस युद्ध से मैं बड़ा खुश हूं। तू जो चाहे वह मांग में वह वस्तु में आज तुझे दे दूंगा मायावी भगवान विष्णु की ऐसी वाणी सुनकर जालंधर ने कहा है !भावुक यदि आप मुझ पर खुश है। तो यह वर दीजिए कि आप मेरी बहन के साथ तथा अपने सारे कुटुंब सहित मेरे घर पर निवास करें ।नारद जी कहते हैं उसके ऐसे वचन सुनकर भगवान को खेद तो हुआ। किंतु उसी क्षण देवेश ने तथास्तु कह दिया अब भगवान विष्णु सब देवताओं के साथ चल जालंधरपुर में जाकर निवास करने लगे। जालंधर अपनी बहन लक्ष्मी और देवताओं सहित भगवान को वहां आकर देख बड़ा प्रसन्न हुआ। फिर तो देवताओं के पास जो रत्ना दी थी उनके स्थानों पर दैत्य को को स्थापित करके जालंधर पृथ्वी पर आ गया हूं निशा को पाताल में स्थापित कर दिया और देव दानव यक्ष गंधर्व राक्षस मनुष्य आदि सबको अपना व स्वर्ती बनाकर त्रिभुवन पर शासन करने लगा उसने धर्मानुसार सुपुत्र को समाज प्रजा का पालन किया उनके धर्म राज्य में सभी सुखी थे।
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